श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 52: महर्षि वसिष्ठ द्वारा विश्वामित्र का सत्कार और कामधेनु को अभीष्ट वस्तुओं की सृष्टि करने का आदेश  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  1.52.14 
 
 
सत्क्रियां हि भवानेतां प्रतीच्छतु मया कृताम्।
राजंस्त्वमतिथिश्रेष्ठ: पूजनीय: प्रयत्नत:॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘राजन! तुम अतिथि रूप में श्रेष्ठ हो, इसलिए पूरी श्रद्धा और यत्न के साथ तुम्हारा सत्कार करना मेरा कर्तव्य है, अतः मेरे द्वारा दिए जा रहे इस सत्कार को तुम स्वीकार करो।’
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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