नगराणि च राष्ट्राणि सरितश्च महागिरीन्।
आश्रमान् क्रमशो राजा विचरन्नाजगाम ह॥ २२॥
वसिष्ठस्याश्रमपदं नानापुष्पलताद्रुमम्।
नानामृगगणाकीर्णं सिद्धचारणसेवितम्॥ २३॥
अनुवाद
महाराजा दिलीप अनेक नगरों, राष्ट्रों, नदियों, बड़े-बड़े पर्वतों और आश्रमों में क्रमशः घूमते हुए महर्षि वसिष्ठ के आश्रम में पहुँच गए। वह आश्रम नाना प्रकार के फूलों, लताओं और वृक्षों से शोभायमान था। वहाँ हर तरफ नाना प्रकार के मृग (वन्यपशु) फैले हुए थे और सिद्ध और चारण उस आश्रम में निवास करते थे।