श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 51: शतानन्द को अहल्या के उद्धार का समाचार बताना,शतानन्द द्वारा श्रीराम का अभिनन्दन करते हुए विश्वामित्रजी के पूर्वचरित्र का वर्णन  »  श्लोक 22-23
 
 
श्लोक  1.51.22-23 
 
 
नगराणि च राष्ट्राणि सरितश्च महागिरीन्।
आश्रमान् क्रमशो राजा विचरन्नाजगाम ह॥ २२॥
वसिष्ठस्याश्रमपदं नानापुष्पलताद्रुमम्।
नानामृगगणाकीर्णं सिद्धचारणसेवितम्॥ २३॥
 
 
अनुवाद
 
  महाराजा दिलीप अनेक नगरों, राष्ट्रों, नदियों, बड़े-बड़े पर्वतों और आश्रमों में क्रमशः घूमते हुए महर्षि वसिष्ठ के आश्रम में पहुँच गए। वह आश्रम नाना प्रकार के फूलों, लताओं और वृक्षों से शोभायमान था। वहाँ हर तरफ नाना प्रकार के मृग (वन्यपशु) फैले हुए थे और सिद्ध और चारण उस आश्रम में निवास करते थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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