श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 45: देवताओं और दैत्यों द्वारा क्षीर-समुद्र मन्थन, भगवान् रुद्र द्वारा हालाहल विष का पान, देवासुर-संग्राम में दैत्यों का संहार  »  श्लोक 39
 
 
श्लोक  1.45.39 
 
 
उच्चै:श्रवा हयश्रेष्ठो मणिरत्नं च कौस्तुभम्।
उदतिष्ठन्नरश्रेष्ठ तथैवामृतमुत्तमम्॥ ३९॥
 
 
अनुवाद
 
  नरश्रेष्ठ! तत्पश्चात् घोड़ों में श्रेष्ठ उच्चैःश्रवा, मणियों में श्रेष्ठ कौस्तुभ और अमृत जैसा उत्तम अमृत प्रकट हुआ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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