श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 45: देवताओं और दैत्यों द्वारा क्षीर-समुद्र मन्थन, भगवान् रुद्र द्वारा हालाहल विष का पान, देवासुर-संग्राम में दैत्यों का संहार  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  1.45.33 
 
 
अप्सु निर्मथनादेव रसात् तस्माद् वरस्त्रिय:।
उत्पेतुर्मनुजश्रेष्ठ तस्मादप्सरसोऽभवन्॥ ३३॥
 
 
अनुवाद
 
  वर श्रेष्ठ मनुष्यों में! मथते समय उसी पानी में उसके रस से ही वो सुन्दर स्त्रियाँ उत्पन्न हुई थीं, इसी कारण उनको अप्सरा कहा गया है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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