श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 44: ब्रह्माजी का भगीरथ को पितरों के तर्पण की आज्ञा देना, गंगावतरण के उपाख्यान की महिमा  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  1.44.14 
 
 
प्लावयस्व त्वमात्मानं नरोत्तम सदोचिते।
सलिले पुरुषश्रेष्ठ शुचि: पुण्यफलो भव॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  नरश्रेष्ठ! पुरुषों में श्रेष्ठ! गंगा जी का जल हमेशा से ही स्नान के लिए उपयुक्त रहा है। तुम स्वयं भी इसमें स्नान करो और शुद्ध होकर पुण्य का फल प्राप्त करो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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