श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 43: भगीरथ की तपस्या, भगवान् शङ्कर का गंगा को अपने सिर पर धारण करना, भगीरथ के पितरों का उद्धार  »  श्लोक 37-38
 
 
श्लोक  1.43.37-38 
 
 
गंगां चापि नयन्ति स्म दुहितृत्वे महात्मन:॥ ३७॥
ततस्तुष्टो महातेजा: श्रोत्राभ्यामसृजत् प्रभु:।
तस्माज्जह्नुसुता गंगा प्रोच्यते जाह्नवीति च॥ ३८॥
 
 
अनुवाद
 
  उन्होंने जलु को विश्वास दिलाया कि गंगा को प्रकट करके आप इनके पिता कहलाएंगे। इससे शक्तिमान और तेजस्वी जलु बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने अपने कानों के छिद्रों से गंगा को पुनः प्रकट कर दिया, इसलिए गंगा जलु की पुत्री और जाह्नवी कहलाती हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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