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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 1: बाल काण्ड
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सर्ग 43: भगीरथ की तपस्या, भगवान् शङ्कर का गंगा को अपने सिर पर धारण करना, भगीरथ के पितरों का उद्धार
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श्लोक 21-22h
श्लोक
1.43.21-22h
शिंशुमारोरगगणैर्मीनैरपि च चञ्चलै:॥ २१॥
विद्युद्भिरिव विक्षिप्तैराकाशमभवत् तदा।
अनुवाद
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गंगा जी के पानी से ऊपर उछलते शिंशुमार, सांप और चंचल मछलियों के समूह से ऐसा लग रहा था जैसे आसमान में चपला मछलियों की रोशनी चारों ओर फैल रही हो।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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