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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 1: बाल काण्ड
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सर्ग 42: ब्रह्माजी का भगीरथ को अभीष्ट वर देना, गंगा जी को धारण करने के लिये भगवान् शङ्कर को राजी करना
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श्लोक 24
श्लोक
1.42.24
गंगाया: पतनं राजन् पृथिवी न सहिष्यते।
तां वै धारयितुं राजन् नान्यं पश्यामि शूलिन:॥ २४॥
अनुवाद
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महाराज! गंगा नदी के गिरने का वेग इतना प्रचंड है कि यह पृथ्वी उसको सह नहीं पाएगी। अतः मैं भगवान शिव के सिवाय ऐसा कोई और नहीं देखता हूं जो गंगा के गिरने के वेग को धारण कर सके।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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