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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 1: बाल काण्ड
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सर्ग 42: ब्रह्माजी का भगीरथ को अभीष्ट वर देना, गंगा जी को धारण करने के लिये भगवान् शङ्कर को राजी करना
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श्लोक 16
श्लोक
1.42.16
भगीरथ महाराज प्रीतस्तेऽहं जनाधिप।
तपसा च सुतप्तेन वरं वरय सुव्रत॥ १६॥
अनुवाद
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महाराज भगीरथ! तुम्हारे इस उत्कृष्ट तप से मैं अति प्रसन्न हूँ। श्रेष्ठ व्रत का पालन करने वाले राजन! तुम कोई वरदान मांगो।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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