ऋषियों ने प्रसन्न होकर जटा बाँधने के लिए रस्सी दी और समिधा बाँधकर लाने के लिए डोरी प्रदान की। एक ऋषि ने यज्ञपात्र दिया तो दूसरे ने काष्ठभार समर्पित किया। कुछ ने गूलर की लकड़ी का बना हुआ पीढ़ा अर्पित किया। कुछ लोग उस समय आशीर्वाद देने लगे—‘बच्चो! तुम दोनों का कल्याण हो।’ दूसरे महर्षि प्रसन्नतापूर्वक बोल उठे—‘तुम्हारी आयु बढ़े।’ इस प्रकार सभी सत्यवादी मुनियों ने उन दोनों को नाना प्रकार के वर दिए।