श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 36: देवताओं का शिव-पार्वती को सुरतक्रीडा से निवृत्त करना तथा उमादेवी का देवताओं और पृथ्वी को शाप देना  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  1.36.24 
 
 
न च पुत्रकृतां प्रीतिं मत्क्रोधकलुषीकृता।
प्राप्स्यसि त्वं सुदुर्मेधो मम पुत्रमनिच्छती॥ २४॥
 
 
अनुवाद
 
  अरे पृथ्वी! तू मेरी बुद्धि को खराब करने वाली है! तू चाहती थी कि मेरे कोई पुत्र न हो, इसलिए तू मेरे कोप से कलुषित हुई है। अतः अब तू भी पुत्र के सुख अथवा प्रसन्नता का अनुभव नहीं कर पाएगी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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