पश्य लक्ष्मण दुर्वृत्तान् राक्षसान् पिशिताशनान्।
मानवास्त्रसमाधूताननिलेन यथा घनान्॥ १५॥
करिष्यामि न संदेहो नोत्सहे हन्तुमीदृशान्।
अनुवाद
‘लक्ष्मण! वह देखो, मांसभक्षण करनेवाले दुराचारी राक्षस आ पहुँचे। मैं मानवास्त्रसे इन सबको उसी प्रकार मार भगाऊँगा, जैसे वायुके वेगसे बादल छिन्न-भिन्न हो जाते हैं। मेरे इस कथनमें तनिक भी संदेह नहीं है। ऐसे कायरोंको मैं मारना नहीं चाहता’॥ १५ १/२॥