श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 30: श्रीराम द्वारा विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा तथा राक्षसों का संहार  »  श्लोक 15-16h
 
 
श्लोक  1.30.15-16h 
 
 
पश्य लक्ष्मण दुर्वृत्तान् राक्षसान् पिशिताशनान्।
मानवास्त्रसमाधूताननिलेन यथा घनान्॥ १५॥
करिष्यामि न संदेहो नोत्सहे हन्तुमीदृशान्।
 
 
अनुवाद
 
  ‘लक्ष्मण! वह देखो, मांसभक्षण करनेवाले दुराचारी राक्षस आ पहुँचे। मैं मानवास्त्रसे इन सबको उसी प्रकार मार भगाऊँगा, जैसे वायुके वेगसे बादल छिन्न-भिन्न हो जाते हैं। मेरे इस कथनमें तनिक भी संदेह नहीं है। ऐसे कायरोंको मैं मारना नहीं चाहता’॥ १५ १/२॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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