उनके ऐसा कहने पर महान तेजस्वी महर्षि विश्वामित्र इन्द्रियों को वश में रखकर नियमानुसार यज्ञ की दीक्षा में प्रवेश कर गये। वे दोनों राजकुमार भी सावधानीपूर्वक रात बिताकर सुबह उठे और स्नान आदि करके प्रातःकाल की संध्या उपासना और नियमानुसार श्रेष्ठ गायत्री मंत्र का जाप करने लगे। जप पूरा होने पर उन्होंने अग्निहोत्र करके बैठे हुए विश्वामित्रजी के चरणों में वन्दना की।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये बालकाण्डे एकोनत्रिंश: सर्ग:॥ २९॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके बालकाण्डमें उन्तीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ २९॥