श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 29: विश्वामित्रजी का श्रीराम से सिद्धाश्रम का पूर्ववृत्तान्त बताना और उन दोनों भाइयों के साथ अपने आश्रम पहुँचकर पूजित होना  »  श्लोक 30-32
 
 
श्लोक  1.29.30-32 
 
 
एवमुक्तो महातेजा विश्वामित्रो महानृषि:।
प्रविवेश तदा दीक्षां नियतो नियतेन्द्रिय:॥ ३०॥
कुमारावपि तां रात्रिमुषित्वा सुसमाहितौ।
प्रभातकाले चोत्थाय पूर्वां संध्यामुपास्य च॥ ३१॥
प्रशुची परमं जाप्यं समाप्य नियमेन च।
हुताग्निहोत्रमासीनं विश्वामित्रमवन्दताम्॥ ३२॥
 
 
अनुवाद
 
  उनके ऐसा कहने पर महान तेजस्वी महर्षि विश्वामित्र इन्द्रियों को वश में रखकर नियमानुसार यज्ञ की दीक्षा में प्रवेश कर गये। वे दोनों राजकुमार भी सावधानीपूर्वक रात बिताकर सुबह उठे और स्नान आदि करके प्रातःकाल की संध्या उपासना और नियमानुसार श्रेष्ठ गायत्री मंत्र का जाप करने लगे। जप पूरा होने पर उन्होंने अग्निहोत्र करके बैठे हुए विश्वामित्रजी के चरणों में वन्दना की।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये बालकाण्डे एकोनत्रिंश: सर्ग:॥ २९॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके बालकाण्डमें उन्तीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ २९॥
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.