तस्य तद् वचनं श्रुत्वा विश्वामित्रोऽभ्यभाषत॥ १५॥
पौलस्त्यवंशप्रभवो रावणो नाम राक्षस:।
स ब्रह्मणा दत्तवरस्त्रैलोक्यं बाधते भृशम्॥ १६॥
महाबलो महावीर्यो राक्षसैर्बहुभिर्वृत:।
श्रूयते च महाराज रावणो राक्षसाधिप:॥ १७॥
साक्षाद्वैश्रवणभ्राता पुत्रो विश्रवसो मुने:।
अनुवाद
विश्वामित्र जी ने राजा दशरथ के कथन को सुनकर कहा, "महाराज! रावण नाम का एक राक्षस है, जो महर्षि पुलस्त्य के वंश में उत्पन्न हुआ है। उसे ब्रह्मा जी से मुंह माँगा वरदान प्राप्त हुआ है, जिसके कारण वह महान बलशाली और महापराक्रमी हो गया है। वह बहुसंख्यक राक्षसों से घिरा हुआ निशाचर तीनों लोकों के निवासियों को अत्यंत कष्ट दे रहा है। सुना जाता है कि राक्षसराज रावण विश्रवा मुनि का औरस पुत्र है और साक्षात कुबेर का भाई है।"