ब्रह्माजी के आदेशानुसार वाल्मीकि भी आसन पर बैठ गए। उस समय साक्षात् लोकपितामह ब्रह्मा के सामने बैठे हुए थे, तब भी वाल्मीकि का मन उस क्रौंच पक्षी वाली घटना की ओर ही लगा रहा। वे उसी के विषय में सोचने लगे -"अरे! जिसकी बुद्धि वैरभाव को ग्रहण करने में ही लगी रहती है, उस पापात्मा व्याध ने बिना किसी अपराध के ही वैसे मनोहर कलरव करने वाले क्रौंच पक्षी के प्राण ले लिए"।