श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 2: तमसा तट पर क्रौंचवध की घटना से शोक संतप्त वाल्मीकि को ब्रह्मा द्वारा रामचरित्रमय काव्य लेखन का आदेश देना  »  श्लोक 27-29h
 
 
श्लोक  1.2.27-29h 
 
 
ब्रह्मणा समनुज्ञात: सोऽप्युपाविशदासने।
उपविष्टे तदा तस्मिन् साक्षाल्लोकपितामहे॥ २७॥
तद‍्गतेनैव मनसा वाल्मीकिर्ध्यानमास्थित:।
पापात्मना कृतं कष्टं वैरग्रहणबुद्धिना॥ २८॥
यत् तादृशं चारुरवं क्रौञ्चं हन्यादकारणात्।
 
 
अनुवाद
 
  ब्रह्माजी के आदेशानुसार वाल्मीकि भी आसन पर बैठ गए। उस समय साक्षात् लोकपितामह ब्रह्मा के सामने बैठे हुए थे, तब भी वाल्मीकि का मन उस क्रौंच पक्षी वाली घटना की ओर ही लगा रहा। वे उसी के विषय में सोचने लगे -"अरे! जिसकी बुद्धि वैरभाव को ग्रहण करने में ही लगी रहती है, उस पापात्मा व्याध ने बिना किसी अपराध के ही वैसे मनोहर कलरव करने वाले क्रौंच पक्षी के प्राण ले लिए"।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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