तत: सर्वे समागम्य वसिष्ठमिदमब्रुवन्।
यथेष्टं तत् सुविहितं न किंचित् परिहीयते॥ १८॥
यथोक्तं तत् करिष्यामो न किंचित् परिहास्यते।
अनुवाद
तब वे सब लोग वसिष्ठ जी के पास जाकर बोले – ‘आप जो भी करना चाहें, उसके हिसाब से ही सब कुछ व्यवस्थित ढंग से किया जाएगा। कोई भी काम बिगड़ने नहीं पाएगा। हम वही करेंगे जो आपने कहा है। उसमें कोई कमी नहीं रहने देंगे।’