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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 0: श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण माहात्म्य
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सर्ग 5: रामायण के नवाह श्रवण की विधि, महिमा तथा फल का वर्णन
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श्लोक 61-62
श्लोक
0.5.61-62
रामायणमादिकाव्यं सर्ववेदार्थसम्मतम्॥ ६१॥
सर्वपापहरं पुण्यं सर्वदु:खनिबर्हणम्।
समस्तपुण्यफलदं सर्वयज्ञफलप्रदम्॥ ६२॥
अनुवाद
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रामायण एक अद्भुत महाकाव्य है और यह सभी वेदों का सार है। यह पापों को दूर करने में आपकी मदद कर सकता है और अच्छे कर्मों में आपका साथ दे सकता है। यह दुख को दूर करने में आपका साथ दे सकता है और आपको अनेक पुण्यों और यज्ञों का फल दिला सकता है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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