श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 0: श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण माहात्म्य  »  सर्ग 5: रामायण के नवाह श्रवण की विधि, महिमा तथा फल का वर्णन  »  श्लोक 57-58
 
 
श्लोक  0.5.57-58 
 
 
तस्य पुण्यफलं वक्ष्ये शृणुध्वं सुसमाहिता:॥ ५७॥
न बाधन्ते ग्रहास्तस्य भूतवेतालकादय:।
तस्यैव सर्वश्रेयांसि वर्द्धन्ते चरिते श्रुते॥ ५८॥
 
 
अनुवाद
 
  दान का पुण्यफल सुनिए, ध्यान से सुनिए। उस दाता को ग्रह एवं भूत-प्रेत आदि कभी परेशान नहीं करते। श्री रामचरित का श्रवण करने से श्रोता के सभी सद्गुणों में वृद्धि होती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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