श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 0: श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण माहात्म्य  »  सर्ग 3: माघमास में रामायण-श्रवण का फल - राजा सुमति और सत्यवती के पूर्व जन्म का इतिहास  »  श्लोक 47-48
 
 
श्लोक  0.3.47-48 
 
 
उद्यमार्थे गतौ चैव वसिष्ठस्याश्रमं तदा॥ ४७॥
दृष्ट्वा चैव समाजं च देवर्षीणां च सत्तम।
रामायणपरा विप्रा माघे दृष्टा दिने दिने॥ ४८॥
 
 
अनुवाद
 
  एकदा जीविकोपार्जन के लिए हम दोनों वशिष्ठजी के आश्रम में गए थे। वहाँ देवर्षियों का एक समाज इकट्ठा हुआ था। उसी को देखने के लिए हम वहाँ गए थे। वहाँ माघ महीने में प्रतिदिन ब्राह्मण रामायण का पाठ करते हुए दिखाई देते थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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