श्री महाभारत  »  पर्व 9: शल्य पर्व  »  अध्याय 59: भीमसेनके द्वारा दुर्योधनका तिरस्कार, युधिष्ठिरका भीमसेनको समझाकर अन्यायसे रोकना और दुर्योधनको सान्त्वना देते हुए खेद प्रकट करना  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  9.59.24 
आत्मनो ह्यपराधेन महद् व्यसनमीदृशम्।
प्राप्तवानसि यल्लोभान्मदाद् बाल्याच्च भारत॥ २४॥
 
 
अनुवाद
हे भरतनन्दन! तुम अपने लोभ, अहंकार और अविद्यारूपी पापों के कारण ही ऐसे महान संकट में पड़े हो॥ 24॥
 
Bharatanandan! You have got into such a great trouble due to your own sins of greed, pride and lack of wisdom.॥ 24॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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