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श्लोक 8.89.45-46h  |
अनेन चास्य क्षुरनेमिनाद्य
संछिन्धि मूर्धानमरे: प्रसह्य॥ ४५॥
मया विसृष्टेन सुदर्शनेन
वज्रेण शक्रो नमुचेरिवारे:। |
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अनुवाद |
आज तुम मेरे द्वारा दिए गए इस तीक्ष्ण धार वाले सुदर्शन चक्र से शत्रु का सिर बलपूर्वक काट डालो, जैसे इंद्र ने वज्र से अपने शत्रु नमुच्छि का सिर काट डाला था। |
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Today you forcefully cut off the head of the enemy with this Sudarshana Chakra given to you by me which has sharp razors on its edges, just as Indra cut off the head of his enemy Namuchhi with the Vajra. 45 1/2. |
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