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श्लोक 8.5.2  |
दुष्प्रणीतेन मे तात पुत्रस्यादीर्घजीविन:।
हतं वैकर्तनं श्रुत्वा शोको मर्माणि कृन्तति॥ २॥ |
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अनुवाद |
पिताश्री, वैकर्तन कर्ण द्वारा मेरे युवा पुत्र की अन्यायपूर्वक हत्या का समाचार सुनकर मेरे हृदय में जो शोक उत्पन्न हुआ है, वह मेरे हृदय को विदीर्ण कर रहा है॥ 2॥ |
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Father, the grief that has risen in me on hearing the news of the unjust killing of my young son by Vaikartana Karna pierces my heart.॥ 2॥ |
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