श्री महाभारत  »  पर्व 8: कर्ण पर्व  »  अध्याय 32: दुर्योधनकी शल्यसे कर्णका सारथि बननेके लिये प्रार्थना और शल्यका इस विषयमें घोर विरोध करना, पुन: श्रीकृष्णके समान अपनी प्रशंसा सुनकर उसे स्वीकार कर लेना  »  श्लोक 65
 
 
श्लोक  8.32.65 
समयश्च हि मे वीर कश्चिद् वैकर्तनं प्रति।
उत्सृजेयं यथाश्रद्धमहं वाचोऽस्य संनिधौ॥ ६५॥
 
 
अनुवाद
परन्तु हे वीर! कर्ण से मेरी एक शर्त है, 'मैं उससे अपनी इच्छानुसार बात कर सकता हूँ।' ॥65॥
 
But, O brave one, I will have one condition with Karna. 'I can talk to him as I wish.' ॥ 65॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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