श्री महाभारत  »  पर्व 8: कर्ण पर्व  »  अध्याय 32: दुर्योधनकी शल्यसे कर्णका सारथि बननेके लिये प्रार्थना और शल्यका इस विषयमें घोर विरोध करना, पुन: श्रीकृष्णके समान अपनी प्रशंसा सुनकर उसे स्वीकार कर लेना  »  श्लोक 62
 
 
श्लोक  8.32.62 
यथाश्वहृदयं वेद वासुदेवो महामना:।
द्विगुणं त्वं तथा वेत्सि मद्रराजेश्वरात्मज॥ ६२॥
 
 
अनुवाद
मद्रराज! जैसे महाबुद्धिमान श्रीकृष्ण घुड़सवारी का रहस्य जानते हैं, वैसे ही आप भी उतना ही, अथवा उनसे दुगुना रहस्य जानते हैं ॥ 62॥
 
"Prince of Madra! Just as the great-minded Sri Krishna knows the secret of horsemanship, you know the same, or even twice as much, as he does." ॥ 62॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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