श्री महाभारत  »  पर्व 8: कर्ण पर्व  »  अध्याय 32: दुर्योधनकी शल्यसे कर्णका सारथि बननेके लिये प्रार्थना और शल्यका इस विषयमें घोर विरोध करना, पुन: श्रीकृष्णके समान अपनी प्रशंसा सुनकर उसे स्वीकार कर लेना  »  श्लोक 59
 
 
श्लोक  8.32.59 
न च त्वत्तो हि राधेयो न चाहमपि वीर्यवान्।
वृणेऽहं त्वां हयाग्र्याणां यन्तारमिह संयुगे॥ ५९॥
 
 
अनुवाद
न तो राधापुत्र कर्ण और न ही मैं तुमसे अधिक शक्तिशाली हूँ। तुम उत्तम अश्वों के सर्वश्रेष्ठ संचालक (घुड़सवारी के सर्वश्रेष्ठ ज्ञाता) हो, इसलिए मैं इस युद्धभूमि में तुम्हें चुन रहा हूँ।'
 
‘Neither Radha's son Karna nor I are stronger than you. You are the best handler of excellent horses (the best knower of horsemanship), so I am choosing you on this battlefield.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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