श्री महाभारत  »  पर्व 8: कर्ण पर्व  »  अध्याय 32: दुर्योधनकी शल्यसे कर्णका सारथि बननेके लिये प्रार्थना और शल्यका इस विषयमें घोर विरोध करना, पुन: श्रीकृष्णके समान अपनी प्रशंसा सुनकर उसे स्वीकार कर लेना  »  श्लोक 58
 
 
श्लोक  8.32.58 
यदेतद् व्याहृतं पूर्वं भवता भूरिदक्षिण।
तदेव कुरु धर्मज्ञ मदर्थं यद् यदुच्यते॥ ५८॥
 
 
अनुवाद
हे धर्मराज! हे यज्ञों में प्रचुर दान देने वाले! आपने जो कुछ पहले कहा है और जो कुछ अब कह रहे हैं, उसे मेरे लिए पूरा कीजिए। ॥58॥
 
O King of Dharma, who gives abundant gifts in sacrifices! Whatever you have said earlier and whatever you are saying now, please complete the same for me. ॥ 58॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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