श्री महाभारत  »  पर्व 8: कर्ण पर्व  »  अध्याय 32: दुर्योधनकी शल्यसे कर्णका सारथि बननेके लिये प्रार्थना और शल्यका इस विषयमें घोर विरोध करना, पुन: श्रीकृष्णके समान अपनी प्रशंसा सुनकर उसे स्वीकार कर लेना  »  श्लोक 57
 
 
श्लोक  8.32.57 
शल्यभूतस्तु शत्रूणां यस्मात्त्वं युधि मानद।
तस्माच्छल्यो हि ते नाम कथ्यते पृथिवीतले॥ ५७॥
 
 
अनुवाद
मनन्द! तुम युद्धभूमि में शत्रुओं के लिए काँटे के समान हो, इसीलिए इस पृथ्वी पर तुम्हारा नाम शल्य प्रसिद्ध है॥57॥
 
Mananda! You are like a thorn for the enemies on the battlefield, that is why your name Shalya is famous on this earth. ॥ 57॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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