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श्लोक 8.32.55  |
न कर्णोऽभ्यधिकस्त्वत्तो न शङ्के त्वां च पार्थिव।
न हि मद्रेश्वरो राजा कुर्याद् यदनृतं भवेत्॥ ५५॥ |
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अनुवाद |
राजन्! न तो कर्ण आपसे श्रेष्ठ है और न ही मुझे आपके विषय में कोई संदेह है। मद्रदेश के अधिपति राजा शल्य अपनी सत्यप्रतिज्ञा के विरुद्ध कोई कार्य नहीं कर सकते ॥ 55॥ |
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‘King! Neither is Karna superior to you nor do I have any doubts about you. King Shalya, the ruler of Madra country cannot do any such thing which is against his true promise. ॥ 55॥ |
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