श्री महाभारत  »  पर्व 8: कर्ण पर्व  »  अध्याय 32: दुर्योधनकी शल्यसे कर्णका सारथि बननेके लिये प्रार्थना और शल्यका इस विषयमें घोर विरोध करना, पुन: श्रीकृष्णके समान अपनी प्रशंसा सुनकर उसे स्वीकार कर लेना  »  श्लोक 55
 
 
श्लोक  8.32.55 
न कर्णोऽभ्यधिकस्त्वत्तो न शङ्के त्वां च पार्थिव।
न हि मद्रेश्वरो राजा कुर्याद् यदनृतं भवेत्॥ ५५॥
 
 
अनुवाद
राजन्! न तो कर्ण आपसे श्रेष्ठ है और न ही मुझे आपके विषय में कोई संदेह है। मद्रदेश के अधिपति राजा शल्य अपनी सत्यप्रतिज्ञा के विरुद्ध कोई कार्य नहीं कर सकते ॥ 55॥
 
‘King! Neither is Karna superior to you nor do I have any doubts about you. King Shalya, the ruler of Madra country cannot do any such thing which is against his true promise. ॥ 55॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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