श्री महाभारत  »  पर्व 8: कर्ण पर्व  »  अध्याय 32: दुर्योधनकी शल्यसे कर्णका सारथि बननेके लिये प्रार्थना और शल्यका इस विषयमें घोर विरोध करना, पुन: श्रीकृष्णके समान अपनी प्रशंसा सुनकर उसे स्वीकार कर लेना  »  श्लोक 54
 
 
श्लोक  8.32.54 
यथा शल्य विजानीषे एवमेतदसंशयम्।
अभिप्रायस्तु मे कश्चित् तं निबोध जनेश्वर॥ ५४॥
 
 
अनुवाद
महाराज शल्य! आप अपने विषय में जो कुछ सोचते हैं, वह सत्य है, इसमें कोई संदेह नहीं है। मेरा मत भिन्न है, कृपया उसे ध्यानपूर्वक सुनें।
 
‘Maharaj Shalya! Whatever you think about yourself is true, there is no doubt about it. I have a different opinion, please listen to it carefully. 54.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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