श्री महाभारत  »  पर्व 8: कर्ण पर्व  »  अध्याय 32: दुर्योधनकी शल्यसे कर्णका सारथि बननेके लिये प्रार्थना और शल्यका इस विषयमें घोर विरोध करना, पुन: श्रीकृष्णके समान अपनी प्रशंसा सुनकर उसे स्वीकार कर लेना  »  श्लोक 53
 
 
श्लोक  8.32.53 
प्रणयाद् बहुमानाच्च तं निगृह्य सुतस्तव।
अब्रवीन्मधुरं वाक्यं साम्ना सर्वार्थसाधकम्॥ ५३॥
 
 
अनुवाद
तब आपके पुत्र ने बड़े प्रेम और आदर के साथ उसे रोककर मधुर एवं सान्त्वनादायक वाणी में उससे ये वचन कहे, जिनसे उसकी समस्त कामनाएँ पूर्ण हो गईं-॥53॥
 
Then your son stopped him with great love and respect and in a sweet and comforting voice said to him these words that fulfilled all his wishes -॥ 53॥
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.