श्री महाभारत  »  पर्व 8: कर्ण पर्व  »  अध्याय 32: दुर्योधनकी शल्यसे कर्णका सारथि बननेके लिये प्रार्थना और शल्यका इस विषयमें घोर विरोध करना, पुन: श्रीकृष्णके समान अपनी प्रशंसा सुनकर उसे स्वीकार कर लेना  »  श्लोक 52
 
 
श्लोक  8.32.52 
संजय उवाच
एवमुक्त्वा महाराज शल्य: समितिशोभन:।
उत्थाय प्रययौ तूर्णं राजमध्यादमर्षित:॥ ५२॥
 
 
अनुवाद
संजय कहते हैं: 'महाराज! ऐसा कहकर युद्ध में निपुण शल्य क्रोध से भर गये और तुरन्त ही राजाओं के बीच से उठकर चले गये।
 
Sanjaya says: 'Maharaj! Having said this, Shalya, who was adept in battle, became filled with anger and immediately got up from among the kings and left.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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