श्री महाभारत  »  पर्व 8: कर्ण पर्व  »  अध्याय 32: दुर्योधनकी शल्यसे कर्णका सारथि बननेके लिये प्रार्थना और शल्यका इस विषयमें घोर विरोध करना, पुन: श्रीकृष्णके समान अपनी प्रशंसा सुनकर उसे स्वीकार कर लेना  »  श्लोक 51
 
 
श्लोक  8.32.51 
अवमानमहं प्राप्य न योत्स्यामि कथञ्चन।
आपृच्छे त्वाद्य गान्धारे गमिष्यामि गृहाय वै॥ ५१॥
 
 
अनुवाद
गांधारीपुत्र! आज यह अपमान पाकर मैं किसी भी प्रकार युद्ध नहीं करूँगा। अतः आपकी अनुमति चाहता हूँ। मैं आज ही अपने घर लौट जाऊँगा। ॥ 51॥
 
Gandhari's son! Today, after receiving this insult, I will not fight in any way. Therefore, I seek your permission. I will return to my home today itself. ॥ 51॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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