श्री महाभारत  »  पर्व 8: कर्ण पर्व  »  अध्याय 32: दुर्योधनकी शल्यसे कर्णका सारथि बननेके लिये प्रार्थना और शल्यका इस विषयमें घोर विरोध करना, पुन: श्रीकृष्णके समान अपनी प्रशंसा सुनकर उसे स्वीकार कर लेना  »  श्लोक 50
 
 
श्लोक  8.32.50 
सोऽहमेतादृशो भूत्वा नेहारिबलसूदन:।
सूतपुत्रस्य संग्रामे सारथ्यं कर्तुमुत्सहे॥ ५०॥
 
 
अनुवाद
मैं इस युद्धभूमि में किसी सारथी के पुत्र का सारथी बनकर कभी भी युद्धभूमि में नहीं जा सकता। ॥50॥
 
Being of such repute and capable of killing the enemy's army, I can never act as a charioteer for a charioteer's son here on this battlefield. ॥ 50॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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