श्री महाभारत  »  पर्व 8: कर्ण पर्व  »  अध्याय 32: दुर्योधनकी शल्यसे कर्णका सारथि बननेके लिये प्रार्थना और शल्यका इस विषयमें घोर विरोध करना, पुन: श्रीकृष्णके समान अपनी प्रशंसा सुनकर उसे स्वीकार कर लेना  »  श्लोक 49
 
 
श्लोक  8.32.49 
अहं मूर्धाभिषिक्तो हि राजर्षिकुलजो नृप:।
महारथ: समाख्यात: सेव्य: स्तुत्यश्च वन्दिनाम्॥ ४९॥
 
 
अनुवाद
मैं ऋषियों के कुल में उत्पन्न हुआ, मूर्तिरूप में अभिषिक्त राजा हूँ, विश्वविख्यात योद्धा हूँ, सेवकों द्वारा सेवित हूँ और बन्दियों द्वारा स्तुति के योग्य हूँ ॥ 49॥
 
I am a king born in a family of sages and anointed as the Idol, a world-renowned warrior, served by servants and worthy of being praised by prisoners. ॥ 49॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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