श्री महाभारत  »  पर्व 8: कर्ण पर्व  »  अध्याय 32: दुर्योधनकी शल्यसे कर्णका सारथि बननेके लिये प्रार्थना और शल्यका इस विषयमें घोर विरोध करना, पुन: श्रीकृष्णके समान अपनी प्रशंसा सुनकर उसे स्वीकार कर लेना  »  श्लोक 48
 
 
श्लोक  8.32.48 
ब्रह्मक्षत्रस्य विहिता: सूता वै परिचारका:।
न क्षत्रियो वै सूतानां शृणुयाच्च कथञ्चन॥ ४८॥
 
 
अनुवाद
सूत जाति के लोग ब्राह्मणों और क्षत्रियों के सेवक नियुक्त हैं। कहीं भी यह सुनने को नहीं मिलता कि कोई क्षत्रिय सूतों का सेवक है।
 
People belonging to the Suta caste are appointed as servants of the Brahmins and Kshatriyas. No one can hear anywhere that a Kshatriya is a servant of Sutas. 48.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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