श्री महाभारत  »  पर्व 8: कर्ण पर्व  »  अध्याय 32: दुर्योधनकी शल्यसे कर्णका सारथि बननेके लिये प्रार्थना और शल्यका इस विषयमें घोर विरोध करना, पुन: श्रीकृष्णके समान अपनी प्रशंसा सुनकर उसे स्वीकार कर लेना  »  श्लोक 41-42h
 
 
श्लोक  8.32.41-42h 
न मामधुरि राजेन्द्र नियोक्तुं त्वमिहार्हसि॥ ४१॥
न हि पापीयस: श्रेयान् भूत्वा प्रेष्यत्वमुत्सहे।
 
 
अनुवाद
राजेन्द्र! आपको मुझे नीच कार्य में नहीं लगाना चाहिए। मैं श्रेष्ठ होने के कारण अत्यंत नीच पापी की सेवा नहीं कर सकता। 41 1/2॥
 
Rajendra! You should not involve me in vile work. Being superior, I cannot serve a very lowly sinner. 41 1/2॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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