श्री महाभारत  »  पर्व 8: कर्ण पर्व  »  अध्याय 32: दुर्योधनकी शल्यसे कर्णका सारथि बननेके लिये प्रार्थना और शल्यका इस विषयमें घोर विरोध करना, पुन: श्रीकृष्णके समान अपनी प्रशंसा सुनकर उसे स्वीकार कर लेना  »  श्लोक 4-5
 
 
श्लोक  8.32.4-5 
तत्त्वामप्रतिवीर्याद्य शत्रुपक्षक्षयावह।
मद्रेश्वर प्रयाचेऽहं शिरसा विनयेन च॥ ४॥
तस्मात् पार्थविनाशार्थं हितार्थं मम चैव हि।
सारथ्यं रथिनां श्रेष्ठ प्रणयात् कर्तुमर्हसि॥ ५॥
 
 
अनुवाद
हे मद्रराज, शत्रुओं का नाश करने वाले, अतुलित पराक्रमी, रथियों में श्रेष्ठ! मैं आपसे सिर झुकाकर नम्रतापूर्वक प्रार्थना करता हूँ कि अर्जुन के विनाश के लिए तथा मेरे हित के लिए आप प्रेमपूर्वक कर्ण के सारथि बनें।॥4-5॥
 
O King of Madra, destroyer of the enemy, incomparably powerful, best among charioteers! I humbly request you with my head bowed that for the destruction of Arjuna and for my own benefit, you lovingly become the charioteer of Karna. ॥ 4-5॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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