श्री महाभारत  »  पर्व 8: कर्ण पर्व  »  अध्याय 32: दुर्योधनकी शल्यसे कर्णका सारथि बननेके लिये प्रार्थना और शल्यका इस विषयमें घोर विरोध करना, पुन: श्रीकृष्णके समान अपनी प्रशंसा सुनकर उसे स्वीकार कर लेना  »  श्लोक 39-40h
 
 
श्लोक  8.32.39-40h 
दारयेयं महीं कृत्स्नां विकिरेयं च पर्वतान्॥ ३९॥
शोषयेयं समुद्रांश्च तेजसा स्वेन पार्थिव।
 
 
अनुवाद
हे राजन! मैं अपनी तेज से सम्पूर्ण पृथ्वी को फाड़ सकता हूँ, पर्वतों को तोड़कर तितर-बितर कर सकता हूँ और समुद्रों को भी सुखा सकता हूँ। ॥39 1/2॥
 
O King! I can tear apart the entire earth, break the mountains and scatter them and can even dry up the oceans with my brilliance. ॥ 39 1/2॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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