श्री महाभारत  »  पर्व 8: कर्ण पर्व  »  अध्याय 32: दुर्योधनकी शल्यसे कर्णका सारथि बननेके लिये प्रार्थना और शल्यका इस विषयमें घोर विरोध करना, पुन: श्रीकृष्णके समान अपनी प्रशंसा सुनकर उसे स्वीकार कर लेना  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  8.32.35 
अथवाप्येक एवाहं योत्स्यामि कुरुनन्दन।
पश्य वीर्यं ममाद्य त्वं संग्रामे दहतो रिपून्॥ ३५॥
 
 
अनुवाद
हे कुरुपुत्र! आज मैं अकेला ही युद्ध करूँगा। जब मैं शत्रुओं को जलाऊँगा, तब तुम युद्ध में मेरा पराक्रम देखोगे।
 
Or, O son of Kuru! Today I will fight alone. You can see my prowess in the battle when I burn the enemies.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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