श्री महाभारत  »  पर्व 8: कर्ण पर्व  »  अध्याय 32: दुर्योधनकी शल्यसे कर्णका सारथि बननेके लिये प्रार्थना और शल्यका इस विषयमें घोर विरोध करना, पुन: श्रीकृष्णके समान अपनी प्रशंसा सुनकर उसे स्वीकार कर लेना  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  8.32.33 
अस्मत्तोऽभ्यधिकं कर्णं मन्यमान: प्रशंससि।
न चाहं युधि राधेयं गणये तुल्यमात्मन:॥ ३३॥
 
 
अनुवाद
आप कर्ण की बहुत प्रशंसा करते हैं और उसे मुझसे श्रेष्ठ मानते हैं; किन्तु मैं राधापुत्र कर्ण को युद्धभूमि में अपने बराबर नहीं समझता।
 
You praise Karna profusely, considering him superior to me; but, I do not consider Radha's son Karna as my equal on the battlefield.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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