श्री महाभारत  »  पर्व 8: कर्ण पर्व  »  अध्याय 32: दुर्योधनकी शल्यसे कर्णका सारथि बननेके लिये प्रार्थना और शल्यका इस विषयमें घोर विरोध करना, पुन: श्रीकृष्णके समान अपनी प्रशंसा सुनकर उसे स्वीकार कर लेना  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  8.32.25 
उद्यन्तौ च यथा सूर्यौ बालसूर्यसमप्रभौ।
कर्णशल्यौ रणे दृष्ट्वा विद्रवन्तु महारथा:॥ २५॥
 
 
अनुवाद
प्रातःकाल के सूर्य के समान तेजस्वी कर्ण और शल्य को युद्धभूमि में दो सूर्यों के समान उदित होते देख शत्रु सेना के महारथी योद्धा भाग गए॥ 25॥
 
Beholding Karna and Shalya, who were as radiant as the morning Sun, rising like two Suns on the battlefield, the mighty warriors of the enemy army fled away.॥ 25॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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