श्री महाभारत  »  पर्व 8: कर्ण पर्व  »  अध्याय 32: दुर्योधनकी शल्यसे कर्णका सारथि बननेके लिये प्रार्थना और शल्यका इस विषयमें घोर विरोध करना, पुन: श्रीकृष्णके समान अपनी प्रशंसा सुनकर उसे स्वीकार कर लेना  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  8.32.18 
तस्मिञ्जयाशा विपुला मद्रराज नराधिप।
तस्याभीषुग्रहवरो नान्योऽस्ति भुवि कश्चन॥ १८॥
 
 
अनुवाद
मद्रराज! हे राजाओं के स्वामी! उसके मन में विजय की बड़ी आशा है, किन्तु इस पृथ्वी पर (आपके समान) कोई दूसरा नहीं है जो उसके घोड़ों की लगाम पकड़ सके।
 
Madraraj! O lord of kings! He has great hopes of victory in his heart, but there is no one else on this earth (like you) who can hold the reins of his horses.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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