श्री महाभारत  »  पर्व 8: कर्ण पर्व  »  अध्याय 32: दुर्योधनकी शल्यसे कर्णका सारथि बननेके लिये प्रार्थना और शल्यका इस विषयमें घोर विरोध करना, पुन: श्रीकृष्णके समान अपनी प्रशंसा सुनकर उसे स्वीकार कर लेना  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  8.32.14 
तदिदं हतभूयिष्ठं बलं मम नराधिप।
पूर्वमप्यल्पकै: पार्थैर्हतं किमुत साम्प्रतम्॥ १४॥
 
 
अनुवाद
नरेश्वर! इस प्रकार मेरी अधिकांश सेना नष्ट हो चुकी है। पहले भी जब मेरी सम्पूर्ण सेना उपस्थित थी, तब भी थोड़े से कुन्तीकुमारों ने कौरव सेना का संहार कर दिया था। फिर इस समय कहने की क्या बात है?॥14॥
 
Nareshwar! In this way, most of my army has been destroyed. Earlier also when my entire army was present, a small number of Kuntikumars had destroyed the Kaurava army. Then what is there to say at this time?॥ 14॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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