श्री महाभारत  »  पर्व 8: कर्ण पर्व  »  अध्याय 32: दुर्योधनकी शल्यसे कर्णका सारथि बननेके लिये प्रार्थना और शल्यका इस विषयमें घोर विरोध करना, पुन: श्रीकृष्णके समान अपनी प्रशंसा सुनकर उसे स्वीकार कर लेना  »  श्लोक 10-11h
 
 
श्लोक  8.32.10-11h 
एवमेष कृतो भागो नवधा पृथिवीपते।
न च भागोऽत्र भीष्मस्य द्रोणस्य च महात्मन:॥ १०॥
ताभ्यामतीत्य तौ भागौ निहता मम शत्रव:।
 
 
अनुवाद
हे पृथ्वीराज! इस प्रकार मेरी सेना इन नौ भागों में विभक्त हो गई। अब भीष्म और महात्मा द्रोणाचार्य का भाग नहीं रहा। उन दोनों ने अपने-अपने निर्धारित भागों से आगे बढ़कर मेरे शत्रुओं का संहार किया है।
 
Lord of the Earth! Thus, my army was divided into these nine parts. Now, Bhishma and Mahatma Dronacharya's part is no longer there. Both of them have gone beyond the parts allotted to them and have killed my enemies. 10 1/2.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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