श्री महाभारत  »  पर्व 8: कर्ण पर्व  »  अध्याय 31: रात्रिमें कौरवोंकी मन्त्रणा, धृतराष्ट्रके द्वारा दैवकी प्रबलताका प्रतिपादन, संजयद्वारा धृतराष्ट्रपर दोषारोप तथा कर्ण और दुर्योधनकी बातचीत  »  श्लोक 28-29
 
 
श्लोक  8.31.28-29 
संजय उवाच
राजन् पूर्वनिमित्तानि धर्मिष्ठानि विचिन्तय॥ २८॥
अतिक्रान्तं हि यत् कार्यं पश्चाच्चिन्तयते नर:।
तच्चास्य न भवेत् कार्यं चिन्तया च विनश्यति॥ २९॥
 
 
अनुवाद
संजय ने कहा, "हे राजन! कृपया जुए तथा अन्य धार्मिक विषयों के लिए आपके द्वारा पहले बताए गए कारणों का स्मरण कीजिए। जो मनुष्य अतीत की चिंता करता है, उसका कार्य सिद्ध नहीं होता, और उसकी चिंता करने से वह स्वयं नष्ट हो जाता है।" 28-29
 
Sanjaya said, "O King! Please remember the reasons given by you earlier for gambling and other religious matters. The person who worries about the past does not accomplish his task, and by worrying about it he himself gets destroyed." 28-29
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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