श्री महाभारत  »  पर्व 8: कर्ण पर्व  »  अध्याय 31: रात्रिमें कौरवोंकी मन्त्रणा, धृतराष्ट्रके द्वारा दैवकी प्रबलताका प्रतिपादन, संजयद्वारा धृतराष्ट्रपर दोषारोप तथा कर्ण और दुर्योधनकी बातचीत  »  श्लोक 16-17h
 
 
श्लोक  8.31.16-17h 
धृतराष्ट्र उवाच
ततो दुर्योधन: सूत पश्चात् किमकरोत्तदा।
यद्वोऽगमन्मनो मन्दा: कर्णं वैकर्तनं प्रति॥ १६॥
अप्यपश्यत राधेयं शीतार्ता इव भास्करम्।
 
 
अनुवाद
धृतराष्ट्र ने पूछा - सूत! उसके बाद दुर्योधन ने क्या किया? मूर्खों! तुम्हारा मन वैकर्तन कर्ण की ओर क्यों गया? जैसे शीत से पीड़ित मनुष्य सूर्य की ओर देखते हैं, क्या तुमने भी राधापुत्र कर्ण की ओर उसी प्रकार देखा?॥16 1/2॥
 
Dhritarashtra asked - Suta! What did Duryodhan do after that? Fools! What is the reason that your minds went towards Vaikartana Karna? Just like the people suffering from cold look towards the sun, did you also look at Radha's son Karna in the same way?॥ 16 1/2॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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