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श्लोक 8.3.5  |
तानि बद्धान्यरिष्टानि लम्बमानानि भारत।
अदृश्यन्त महाराज नक्षत्राणि यथा दिवि॥ ५॥ |
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अनुवाद |
हे भरतवंशी राजा! कमर आदि में लटके हुए वे अस्त्र-शस्त्र आकाश से गिरते हुए तारों के समान प्रतीत हो रहे थे। |
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O King of the Bharata dynasty! Those weapons hanging from the waist etc. looked like stars falling from the sky. |
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