श्री महाभारत  »  पर्व 8: कर्ण पर्व  »  अध्याय 17: अर्जुनके द्वारा अश्वत्थामाकी पराजय  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  8.17.2 
संतापयन्तावन्योन्यं दीप्तै: शरगभस्तिभि:।
लोकत्रासकरावास्तां विमार्गस्थौ ग्रहाविव॥ २॥
 
 
अनुवाद
जैसे दो ग्रह टेढ़े या अतिशय दिशा में चलते हुए सम्पूर्ण जगत् के लिए भय का कारण बन जाते हैं, उसी प्रकार वे दोनों वीर अपने बाणों की प्रज्वलित किरणों से एक-दूसरे को पीड़ा देने लगे॥2॥
 
Just as two planets moving in a crooked or excessive direction become a cause of terror for the entire world, in the same way those two heroes began tormenting each other with the blazing rays of their arrows.॥ 2॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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