श्री महाभारत  »  पर्व 8: कर्ण पर्व  »  अध्याय 11: कर्णके सेनापतित्वमें कौरव-सेनाका युद्धके लिये प्रस्थान और मकरव्यूहका निर्माण तथा पाण्डव-सेनाके अर्धचन्द्राकार व्यूहकी रचना और युद्धका आरम्भ  »  श्लोक 25-27
 
 
श्लोक  8.11.25-27 
एको ह्यत्र महेष्वास: सूतपुत्रो विराजते।
सदेवासुरगन्धर्वै: सकिन्नरमहोरगै:॥ २५॥
चराचरैस्त्रिभिर्लोकैर्योऽजय्यो रथिनां वर:।
तं हत्वाद्य महाबाहो विजयस्तव फाल्गुन॥ २६॥
उद्‍धृतश्च भवेच्छल्यो मम द्वादशवार्षिक:।
एवं ज्ञात्वा महाबाहो व्यूहं व्यूह यथेच्छसि॥ २७॥
 
 
अनुवाद
इस सेना में एकमात्र महाधनुर्धर सूतपुत्र कर्ण उपस्थित है, जो रथियों में श्रेष्ठ है और जिसे देवता, दानव, गन्धर्व, किन्नर, बड़े-बड़े नाग तथा तीनों लोकों के मनुष्य मिलकर भी परास्त नहीं कर सकते। हे महाबाहु फाल्गुन! आज उस कर्ण को मारकर तुम विजयी होगे और बारह वर्षों से मुझे जो पीड़ा हो रही है, वह दूर हो जाएगी। महाबाहु! ऐसा जानकर तुम अपनी इच्छानुसार सेना बनाओ।॥25-27॥
 
In this army, the only great archer, Sutaputra Karna is present, who is the best among charioteers and whom even the gods, demons, Gandharvas, Kinnars, big serpents and the people of all the three worlds together cannot defeat. O Mahabahu Phalguna! Today, by killing that Karna, you will be victorious and the pain that has been troubling me for the last twelve years will be removed. Mahabahu! Knowing this, form the formation as per your wish.'॥ 25-27॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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