श्री महाभारत  »  पर्व 8: कर्ण पर्व  »  अध्याय 1: कर्णवधका संक्षिप्त वृत्तान्त सुनकर जनमेजयका वैशम्पायनजीसे उसे विस्तारपूर्वक कहनेका अनुरोध  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  8.1.21 
दुर्मरं तदहं मन्ये नृणां कृच्छ्रेऽपि वर्तताम्।
यत्र कर्णं हतं श्रुत्वा नात्यजज्जीवितं नृप:॥ २१॥
 
 
अनुवाद
मैं समझता हूँ कि घोर विपत्ति आने पर भी मनुष्यों के लिए प्राण त्यागना अत्यन्त कठिन होता है। इसीलिए कर्ण की मृत्यु का वृत्तांत सुनकर भी राजा धृतराष्ट्र ने प्राण त्यागे नहीं।
 
I understand that it is very difficult for men to give up their lives even when faced with a great calamity. That is why even after hearing the story of Karna's death, King Dhritarashtra did not give up his life.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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